बाल-कहानी : गरीबों की पहचान

-संजय कुमार श्रीवास्तव-

एक समय की बात है। कि एक छोटे से गांव में रामू नाम का व्यक्ति रहता था। वह बहुत गरीब था वह अपने बच्चों की पढ़ाई के लिए वह दिन रात मेहनत करता और उससे जो चार पैसे मिलते वह अपने बच्चों की किताबे व कॉपी लाता और फीस जमा कर देता था । उसके मन की अभिलाषा थी कि उसके बच्चे इस दुनिया में कुछ कर दिखाए।

रामू गांव के मुखिया के वहां काम पर जाता और भैंसों के लिए चारा फट्टा लाता उसी से अपना और अपने बच्चों का गुजारा करता। और अपने परिवार का खर्च उठाता था।

एक बार उसे काम पर जाने में देर हो गई वह मुखिया के वहां देर में पहुंचा तो उसे मुखिया ने खरी-खोटी सुनाई रामू सुनता गया। और मन ही मन सोचता गया “वह रे गरीबी।”

और मुखिया से कहने लगा साहब अब कभी देर नहीं होगी रामू रोज सुबह घर से जल्दी निकल लेता था और मुखिया के वहां पहुंच जाता था उसके बाद वह चारा लाता भैंसों को नहलाता लाता था। 10 भैंसो की सेवा अकेला रामू ही करता था। वह परेशान हो जाता था तो चनि के किनारे नीम के पेड़ के पास बैठ जाता था। एक बार उसे मुखिया ने देख लिया तो कहा क्यो रे रुपए हराम के देता हूं क्या। उठो और खेत से चारा लाओ बेचारा रामू खेत पर चला गया शाम को 8:00 बजे घर आया तो रात को सोते समय उसके मन में यही ख्याल आता था कि “वह रे गरीबी” तू मुझसे क्या क्या करवाएगी। सुबह होते ही वह काम के लिए निकल गया। शाम को फिर जब घर आता है तो उसकी तबीयत खराब हो गई उसे डॉक्टर ने काम करने के लिए मना किया और कहा तुम्हे आराम की जरूरत है। तो वो काम पर नहीं गया तो मुखिया ने उसकी जगह पर दूसरे व्यक्ति को नौकरी पर रख लिया। जब यह बात रामू को पता चली तो मुखिया के वहां गया और मुखिया साहब के पैरों पर गिर कर कहने लगा। मुखिया साहब मुझे मत निकालो मुझे मत निकालो मैं कहां जाऊंगा मेरे बेटे कैसे पढ़ाई कर पाएंगे साहब मुझ गरीब का तुम्हारे बिना कोई नहीं है। मुझे मत निकालो पर मुखिया ने उसकी एक भी नहीं मानी सुनी और रामू उदास मन से घर वापस आ गया तो रामू की पत्नी ने रामू से पूछा क्यों आज उदास क्यों हो क्या हुआ। आज जल्दी घर वापस आ गए तब रामू ने अपनी पत्नी को पूरा हाल बताया अब दोनों परेशान हो गए। रामू की पत्नी ने कहा कि बच्चों की पढ़ाई कैसे होगी। तो रामू ने कहा कुछ तो करना पड़ेगा ही।

“वरना मेरे बच्चों से लगी मेरी आशा टूट जाएगी।”

वह अपने परिवार की जीविका चलाने के लिए जंगल के किनारे नदी में पड़ी नाव के मालिक के पास गया और बोला साहब मुझे भी कोई काम दे दो तो मालिक ने कहा नाव चलानी आती है तो रामू ने कहा हां मालिक आती है। मालिक मुझे लगा लो आप जो तनख्वाह दोगे मैं उतने में ही गुजारा कर लूंगा नाव का मालिक भी गरीबी से गुजर चुका था उसे पता था कि गरीबों के पास वह धन होता है। वह बल होता है। जिसे कोई कभी भी नहीं खरीद सकता। क्योंकि सबसे ज्यादा सम्मान देना गरीब ही जानते हैं। रामू का बड़ा बेटा श्यामू रोज सुबह स्कूल जाता लेकिन उसे यह नहीं पता था कि पिताजी नाव चलाते हैं। वह स्कूल से वापस आ रहा था। तब तक उससे मुखिया साहब की मुलाकात हो जाती है। तो मुखिया साहब ने श्यामू से पूछा क्यों रे तेरा पिता कहां है श्यामू चौक गया। उसने कहा साहब पिताजी तो आपके वहां काम करने आते हैं रोज मालिक ने कहा वह अब यहां नहीं आता है। श्यामू घर जाते ही अपनी मां से कहता है मां पिताजी अब कहां काम करते हैं। तो माँ ने कहा कि 1 दिन काम पर ना पहुंचने से मुखिया साहब ने तुम्हारे पिता को काम से हटा दिया था। अब वह नाव चलाने जाते हैं। बेटे की आंख में आंसू आ जाते हैं सोचने लगता है कि मैं क्या करूं जिससे अपने माता-पिता के के दुखों को दूर कर सकूं यही सोचते-सोचते सो गया। सुबह स्कूल गया। स्कूल में भी मास्टर साहब गरीबी की चर्चा कर रहे थे। गरीबी का नाम सुनकर श्यामू ने अपना ध्यान केंद्रित किया और मास्टर जी द्वारा दी जा रही चर्चाओं को सुनता गया मास्टर साहब ने बताया कि गरीबों के पास वह धन होता है । कि आमिर उसे कभी भी नहीं खरीद सकता श्यामू ने कहा गुरुजी “वह कौन सा धन है ” जिसे अमीर नहीं खरीद सकता है। तो मास्टर जी ने बताया-

जानना ही चाहते हो तो सुनो -गरीबों के पास प्रेम, सम्मान, व अच्छा व्यवहार होता है वह हमेशा अपने से बड़े व्यक्ति को कभी जवाब नहीं देते पर जब उन्हें सताया जाता है। तो ऐसा रूप धारण कर लेते हैं। कि “लोहे की औकात क्या जो उसका सामना कर सके।”

रामू मेहनत करता गया उसे सरकारी नौकरी मिल गई।

जब यह बात मुखिया को पता चली तो वह भी उसके घर गए क्योंकि गांव में कोई सरकारी नौकर नहीं था। जब यह बात मुखिया को पता चला कि रामू किसी दूसरे के वहां काम पर भी जाता है। तो उससे मिलने उसके घर गए।

रामू खाना खा रहा था।

मुखिया साहब रामू के घर पहुंचते ही द्वार से खड़े होकर आवाज दी क्यों रे रमुवा कहां है।

रामू ने आवाज पहचान ली। और खाना छोड़कर भागता हुआ द्वार पर आया और मुखिया साहब को देखकर वह चकित हो गया और उनके पैरों पर गिर गया बोला साहब आप मेरे घर क्या काम है साहब यह सब उसका बेटा देख रहा था। वह प्रबल बुद्धि का था उसने जब पिताजी को मुखिया के पैरों पर गिरा देखकर मुखिया के सामने पिता से कहता है। पिताजी यह बड़े लोग। गरीबों का सम्मान नहीं करते हैं इनके पैरों पर गिरने से कोई फायदा नहीं कोई माने में उसने सही ही कहा है अगर हम अमीरों की जगह किसी गरीब व्यक्ति के पैरों पर गिर जाए तो वह रात को सोते वक्त एक बार जरूर सोचेगा कि क्या है। मुझमें जो उसने मेरे पैर छुए पर अमीर तो हाथ भी नहीं रखते हैं। अमीर भूल रहे हैं अगर गरीब मेहनत करके अनाज ना पैदा करें तो अमीर मर जाएंगे क्योंकि हम गरीबों की बदौलत अमीर जिंदा है। श्यामू की इतनी बातें सुनकर उसके पिता ने उसे डांटा और कहा शांत हो जाओ आज जो भी है सब इन्ही की ही देन है। हमें नहीं भूलना चाहिए कि द्वार पर आए हुए दुश्मनों का भी स्वागत करना चाहिए लेकिन ये तो हमारे मुखिया साहब हैं। इतनी बातें सुनते ही मुखिया जी की आंख में आंसू भर आये और कहने लगे रामू आज तुमने बता दिया कि गरीब कितने बड़े दिल वाले होते हैं। उनके साथ चाहे जैसा बर्ताव करो फिर भी उन लोगों के दिल में वही प्यार वही सहनशीलता रहती है। वही प्यार स्नेह भाव रहता है। मुखिया ने रामू से कहा तुम वहां नाव चलाने जाते हो कल से मेरे वहां काम पर आ जाना।

तो रामू कहता है-क्या करूं मालिक

“उदर निमित बहु कृति वेषा “

पेट भरने के लिए अनेक रूप धारण करने पड़ते हैं।

रामू नाव मालिक को धोखा देकर जाना नहीं चाहता था। उसने मुखिया साहब से साफ इनकार कर दिया।

मुखिया साहब सिर नीचे करके वापस लौट गए हैं।

इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है।

कि गरीबों के प्रति अमीरों को कभी भी घृणा नहीं करनी चाहिए क्योंकि वक्त पर गरीब ही काम आते हैं रहीम दास ने कहा है।

“रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिए डारि

जहां काम आवे सुई, कहा करे तरवारि “

अर्थ : रहीम कहते हैं कि बड़ी वस्तु को देख कर छोटी वस्तु को फेंक नहीं देना चाहिए. जहां छोटी सी सुई काम आती है,

वहां बड़ी तलवार काम नहीं आती।

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